OPS Scheme – पुरानी पेंशन योजना यानी OPS को लेकर सरकारी कर्मचारियों के बीच काफी समय से हलचल मची हुई है। जब 1 अप्रैल 2004 को सरकार ने अचानक OPS को बंद कर NPS यानी नई पेंशन योजना लागू की थी, तब से ही ये एक बड़ा मुद्दा बन गया था। खासकर उन कर्मचारियों के लिए, जिन्होंने सरकारी नौकरी को भविष्य की आर्थिक सुरक्षा मानकर जॉइन किया था। OPS में रिटायरमेंट के बाद तयशुदा पेंशन मिलती थी, जबकि NPS में पेंशन की राशि शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती है, जिससे कर्मचारियों को पेंशन के नाम पर अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।
OPS क्यों है इतना जरूरी?
पुरानी पेंशन योजना की खास बात ये थी कि रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित राशि मिलती थी, जो हर छह महीने में महंगाई के हिसाब से बढ़ती भी थी। यानी बुज़ुर्गावस्था में भी सरकारी कर्मचारी को चिंता करने की जरूरत नहीं होती थी। वहीं NPS में पेंशन इस बात पर निर्भर करती है कि मार्केट कैसा चल रहा है। अगर शेयर बाजार नीचे गिरता है तो पेंशन भी घट सकती है। यही कारण है कि अधिकतर कर्मचारी और उनके परिवार OPS को बेहतर मानते हैं और चाहते हैं कि सरकार इसे फिर से लागू करे।
सरकारी कर्मचारियों की बढ़ती मांग
सरकारी कर्मचारी और उनके संगठन लंबे समय से OPS की वापसी की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि NPS से न तो भविष्य की गारंटी मिलती है और न ही रिटायरमेंट के बाद चैन की नींद आती है। OPS में एक तरह की मानसिक शांति थी कि रिटायरमेंट के बाद कम से कम आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। इसी सोच के साथ कई संगठनों ने प्रधानमंत्री से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक को ज्ञापन भेजा है और अब यह मुद्दा फिर से गरमा गया है।
क्या सरकार ने किया कोई ऐलान?
फिलहाल केंद्र सरकार की तरफ से कोई ठोस ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन चर्चा जोरों पर है। सरकार भी इस मुद्दे पर विचार कर रही है, लेकिन सबसे बड़ा रोड़ा है वित्तीय बोझ। OPS लागू करने से सरकार पर हर साल पेंशन देने का दबाव बढ़ेगा, और ये राशि साल दर साल बढ़ती जाएगी। ऐसे में सरकार को बाकी क्षेत्रों में खर्च कम करना पड़ सकता है या फिर टैक्स बढ़ाने की नौबत आ सकती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार फिलहाल सोच-समझकर ही कोई कदम उठाना चाहती है।
राज्यों का नजरिया
कई राज्य सरकारें इस मुद्दे पर पहले ही कदम बढ़ा चुकी हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने OPS को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है। अगर केंद्र सरकार इसे लागू करती है, तो बाकी राज्य भी जल्द ही अपने कर्मचारियों के लिए OPS वापस ला सकते हैं। जैसा कि सैलरी रिवीजन के मामलों में भी देखा गया है, जब केंद्र सरकार वेतन बढ़ाती है तो राज्य भी उसी राह पर चलते हैं। इसीलिए केंद्र का फैसला काफी अहम माना जा रहा है।
जल्द हो सकता है बड़ा प्रदर्शन
खबरों की मानें तो दिल्ली और देश के कई हिस्सों में सरकारी कर्मचारी बड़े प्रदर्शन की तैयारी में हैं। हालांकि तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन अंदाजा है कि यह आंदोलन अब पहले से ज्यादा असरदार होगा। कर्मचारी संगठन अब किसी भी हालत में OPS की वापसी चाहते हैं और उन्होंने साफ कहा है कि जब तक सरकार इस पर फैसला नहीं लेती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। ये सिर्फ कोई आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि उनके भविष्य और सम्मान की बात है।
देरी की वजह क्या है?
OPS को फिर से लागू करने में देरी की सबसे बड़ी वजह यही है कि इससे सरकार पर बहुत बड़ा खर्च बढ़ जाएगा। यह योजना पूरी तरह से सरकार द्वारा वहन की जाती है, जिसमें रिटायरमेंट के बाद हर महीने पेंशन दी जाती है। इसके अलावा, सरकार ये भी मानती है कि NPS के जरिए युवा कर्मचारियों को बाजार आधारित बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना है। लेकिन कर्मचारियों का मानना है कि रिटर्न की उम्मीद से ज्यादा जरूरी है भविष्य की गारंटी।
आगे क्या हो सकता है?
अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार कब और क्या फैसला लेती है। लगातार बढ़ते दबाव और राज्यों के सकारात्मक संकेतों के चलते उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीनों में कोई बड़ा ऐलान हो सकता है। कर्मचारी संगठनों ने साफ कहा है कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। सरकार के लिए अब यह एक संतुलन का मामला बन चुका है – एक तरफ कर्मचारियों की मांग, दूसरी तरफ वित्तीय दबाव। देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर कब तक और क्या फैसला लेती है।
Disclaimer
इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। इसमें किसी सरकारी घोषणा की पुष्टि नहीं की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले आधिकारिक सूचनाओं का इंतजार करें।