हाईकोर्ट का झटका! बेटियों को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हक Daughter Property Rights

By Prerna Gupta

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Daughter Property Rights

Daughter Property Rights – हाल ही में हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जो बेटियों के संपत्ति अधिकार को लेकर चर्चा में आ गया है। इस फैसले में साफ कहा गया कि कुछ शर्तों को पूरा किए बिना बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। यह बात जरूर चौंकाने वाली है क्योंकि आम तौर पर माना जाता है कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक मिल चुका है। लेकिन कोर्ट ने इस मामले में कानून की कुछ बारीकियों को आधार बनाते हुए ये सख्त रुख अपनाया है।

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बेटियों के अधिकार का मुद्दा और इसकी अहमियत

हमारे समाज में बेटियों को लेकर हमेशा से ही दोहरापन देखा गया है। एक तरफ कहा जाता है कि बेटा-बेटी एक समान हैं, लेकिन जब बात संपत्ति की आती है तो परंपराएं और मान्यताएं आड़े आ जाती हैं। हाईकोर्ट का ये ताजा फैसला इसी टकराव को ध्यान में रखते हुए आया है, जहां बेटियों को उनके अधिकार तभी मिलेंगे जब वे कुछ जरूरी कानूनी शर्तें पूरी करती हों। हालांकि ये फैसला बेटियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

फैसले की अहम बातें

इस फैसले में कुछ खास बातें सामने आई हैं। मसलन, अगर किसी पिता की मृत्यु के समय बेटी नाबालिग है तो उसे संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। शादी हो जाने के बाद भी बेटी का हक बना रहता है। लेकिन अगर किसी बेटी ने अपनी मर्जी से संपत्ति पर दावा नहीं किया तो उसे हक नहीं दिया जाएगा। यानी केवल बेटी होना ही काफी नहीं है, बल्कि समय रहते और सही तरीके से कानूनी प्रक्रिया अपनाना भी जरूरी है।

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कानूनी नजरिए से बेटियों का अधिकार

संविधान की धारा 14 और 15 में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है और महिलाओं के लिए विशेष प्रावधानों की बात भी की गई है। इसके अलावा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और उसके 2015 के संशोधन के तहत बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिला है। लेकिन जब बात कोर्ट में आती है तो कानूनी प्रक्रियाएं और शर्तें अहम हो जाती हैं। इस फैसले ने साफ कर दिया कि बिना कानूनी पात्रता साबित किए बेटियों को संपत्ति नहीं मिलेगी।

शर्तों के आधार पर बेटियों का हक

अगर बेटी नाबालिग है, तो पिता की मृत्यु की स्थिति में उसे अधिकार मिलेगा। शादी हो जाने के बावजूद हक बना रहता है, जो पहले एक भ्रम की स्थिति थी। लेकिन अगर बेटी ने खुद आगे बढ़कर संपत्ति पर दावा नहीं किया या समय पर कानूनी कदम नहीं उठाए, तो उसे हक नहीं मिलेगा। साथ ही, संपत्ति अगर पैतृक है तो ही अधिकार बनता है, व्यक्तिगत संपत्ति में नहीं। यह भी बताया गया है कि परिवार की सहमति जरूरी नहीं है अगर बेटी कानूनी रूप से पात्र है।

समाज और परिवार पर असर

इस फैसले का असर केवल कानून तक सीमित नहीं है। इससे समाज में बेटियों को लेकर सोच में बदलाव आ सकता है। बेटियों के अधिकारों को लेकर अब परिवारों को ज्यादा जिम्मेदार बनना पड़ेगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश में महिला सशक्तिकरण की बातें हर मंच पर हो रही हैं। अब ये केवल नारों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जमीन पर भी कुछ बदलाव दिख सकते हैं।

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परिवार की भूमिका बहुत अहम है

परिवार अगर बेटियों को उनके अधिकारों को लेकर जागरूक बनाए, तो आधी लड़ाई वैसे ही जीत ली जाती है। बेटियों को शिक्षा के जरिए उनके हक की जानकारी देना बेहद जरूरी है। परिवार में खुलकर बातचीत होनी चाहिए, जिससे सभी को यह समझ आए कि बेटियों को क्या-क्या हक हासिल हैं। अगर किसी बेटी को न्याय नहीं मिल रहा, तो परिवार को उसकी मदद के लिए कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए।

कानूनी प्रक्रिया कैसी होती है?

अगर किसी बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा चाहिए, तो उसे तय समय के भीतर दावा करना होता है। इसके लिए वकील से सलाह लेना, अदालत में दस्तावेज़ पेश करना और कानूनी प्रक्रिया को फॉलो करना जरूरी होता है। अगर कोर्ट का फैसला पक्ष में नहीं आए, तो उसके खिलाफ अपील भी की जा सकती है। हालांकि कई बार पारिवारिक सहमति से भी मामला सुलझ जाता है, लेकिन इसके लिए कानूनी जागरूकता जरूरी है।

आने वाले समय में क्या बदलाव हो सकते हैं

इस फैसले से समाज में बेटियों को लेकर सकारात्मक सोच बन सकती है। उन्हें हक के लिए खड़े होने की प्रेरणा मिलेगी। बेटियों का सशक्तिकरण और लैंगिक समानता जैसे मुद्दे अब और मजबूत हो सकते हैं। लोगों की सोच में भी बदलाव आएगा और शायद बेटियों को उनका हक देना अब मजबूरी नहीं, जिम्मेदारी समझा जाएगा।

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समाज में जागरूकता की जरूरत

अगर बेटियों को उनके हक से वाकिफ कराना है, तो सबसे पहले कानूनी शिक्षा की जरूरत है। परिवारों में बेटियों से संवाद बढ़ाना होगा। जब बेटियां अपने हक को समझेंगी, तो उन्हें समाज से भी समर्थन मिलेगा। इससे सामाजिक समस्याएं भी हल हो सकेंगी और बेटियों को उनके अधिकार दिलवाना आसान हो जाएगा।

भविष्य की दिशा क्या हो सकती है

आने वाले समय में कानून और सख्त हो सकते हैं जिससे बेटियों के अधिकार ज्यादा सुरक्षित हों। समाज में जागरूकता बढ़ेगी और परिवारों में खुली बातचीत का चलन भी बढ़ेगा। बेटियों को उनके अधिकारों की जानकारी देने के लिए शिक्षा तंत्र को भी सुधारना होगा। महिलाओं की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी जिससे पूरे समाज को फायदा पहुंचेगा।

Disclaimer

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यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दिए गए कानूनी बिंदु किसी विशेष केस या सलाह का विकल्प नहीं हैं। किसी भी कानूनी कार्यवाही से पहले योग्य विधिक सलाह अवश्य लें।

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