RBI New Rule – भारत में ज्यादातर लोग अपनी मेहनत की कमाई बैंक में जमा करना ही सुरक्षित मानते हैं। आखिर बैंकिंग सिस्टम पर लोगों का भरोसा दशकों से बना हुआ है। लेकिन कभी न कभी मन में ये सवाल जरूर आता है कि अगर बैंक डूब गया या बंद हो गया तो हमारी जमा पूंजी का क्या होगा? क्या हमें हमारे पैसे वापस मिलेंगे? इस चिंता को दूर करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI ने कुछ पुख्ता नियम बनाए हैं जो ग्राहकों को सुरक्षा का भरोसा दिलाते हैं।
ग्राहकों की सुरक्षा के लिए RBI की पहल
बैंकिंग सिस्टम की मजबूती और लोगों का विश्वास बनाए रखना RBI की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। अगर लोग बैंकों पर से भरोसा खो देंगे तो इसका असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इसी वजह से RBI ने एक सुरक्षा तंत्र तैयार किया है जिसके तहत किसी बैंक के फेल होने की स्थिति में भी ग्राहकों को उनकी जमा राशि का कुछ हिस्सा जरूर वापस मिलेगा।
क्या है DICGC और इसकी भूमिका
RBI के अंतर्गत एक संस्था है – DICGC यानी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन। इसका मुख्य काम बैंक ग्राहकों की जमा राशि को बीमा सुरक्षा देना है। जब भी कोई बैंक डूबता है या RBI उसका लाइसेंस कैंसिल करता है, तो DICGC उन ग्राहकों को एक तय सीमा तक मुआवजा देती है। यह व्यवस्था 1978 से चल रही है और छोटे जमाकर्ताओं को काफी हद तक राहत देती है।
कितना पैसा मिलता है वापस – जानिए बीमा कवर की सीमा
फिलहाल DICGC हर जमाकर्ता को अधिकतम 5 लाख रुपये तक की सुरक्षा देती है। पहले ये सीमा सिर्फ 1 लाख रुपये थी लेकिन 2020 में इसे बढ़ा दिया गया। अब अगर किसी बैंक में आपका पैसा जमा है और वो बैंक बंद हो जाता है तो 5 लाख रुपये तक की राशि आपको पूरी मिल जाएगी। लेकिन अगर आपने उस बैंक में 7 या 10 लाख रुपये रखे हैं, तो आपको केवल 5 लाख रुपये ही वापस मिलेंगे।
ये कवर सेविंग अकाउंट, करंट अकाउंट, फिक्स्ड डिपॉजिट और आरडी यानी रिकरिंग डिपॉजिट पर भी लागू होता है। लेकिन ध्यान रहे कि ये कवर प्रति बैंक के हिसाब से होता है, ना कि प्रति खाते के अनुसार। यानी अगर आपके एक ही बैंक की अलग-अलग ब्रांच में कई अकाउंट हैं तो सबको मिलाकर भी अधिकतम 5 लाख रुपये ही मिलेंगे।
एक बैंक, कई ब्रांच – बीमा पर क्या असर पड़ेगा?
कई बार लोग सुविधा के लिए एक ही बैंक की अलग-अलग ब्रांचों में खाते खोलते हैं, खासतौर पर जब उनका ट्रांसफर अलग शहरों में होता रहता है। लेकिन DICGC के नियम के अनुसार, एक ही बैंक की जितनी भी ब्रांच हों, सबकी जमा राशि को जोड़कर देखा जाता है। यानी अगर आपका SBI के दिल्ली और मुंबई ब्रांच में खाता है, तो इन दोनों को मिलाकर 5 लाख रुपये तक का ही बीमा कवर मिलेगा।
बचत का स्मार्ट तरीका – अलग-अलग बैंकों में अकाउंट रखें
अगर आपके पास बड़ी रकम है और आप इसे पूरी तरह सुरक्षित रखना चाहते हैं तो एक अच्छा तरीका है कि आप इस राशि को अलग-अलग बैंकों में बांट दें। मान लीजिए आपके पास 10 लाख रुपये हैं, तो इसे SBI और ICICI जैसे दो अलग बैंकों में 5-5 लाख रुपये करके रखें। इससे दोनों बैंकों से आपको पूरा बीमा कवर मिलेगा और आपकी पूरी रकम सुरक्षित रहेगी।
हर बैंक पर मिलता है अलग बीमा कवर
अगर आपके ICICI में 5 लाख और HDFC में 5 लाख जमा हैं, तो दोनों बैंकों से आपको अलग-अलग 5-5 लाख का बीमा कवर मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों बैंक अलग-अलग DICGC को प्रीमियम देते हैं। और वैसे भी एक साथ दो बैंकों के डूबने की संभावना बहुत ही कम होती है। इस तरह से आपकी रकम ज्यादा सुरक्षित रहती है और अगर एक बैंक में दिक्कत आती है तो आप दूसरे से लेन-देन जारी रख सकते हैं।
सहकारी समितियों में पैसा जमा करने से पहले सोचें
ध्यान देने वाली बात ये है कि DICGC का बीमा कवर हर संस्था पर लागू नहीं होता। सहकारी समितियों में जमा की गई राशि पर ये बीमा लागू नहीं होता है। कई बार लोग ज्यादा ब्याज के लालच में सहकारी समितियों में पैसे रखते हैं, लेकिन यह जोखिम भरा हो सकता है। सहकारी संस्थाओं की निगरानी भी उतनी सख्त नहीं होती जितनी वाणिज्यिक बैंकों की होती है, इसलिए इनमें निवेश करने से पहले अच्छे से सोच-विचार करें।
भविष्य में बीमा कवर और बढ़ सकता है
अभी 5 लाख रुपये तक का ही बीमा कवर है, लेकिन भविष्य में इसे बढ़ाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। जैसे-जैसे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है और आमदनी बढ़ रही है, वैसे-वैसे लोगों की जमा राशि भी बढ़ रही है। ऐसे में ज्यादा बीमा कवर की मांग समय-समय पर उठती रहती है। तब तक आप मौजूदा नियमों को समझकर और समझदारी से प्लान बनाकर ही अपनी रकम को मैनेज करें।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। DICGC या RBI की नियमावली समय-समय पर बदल सकती है। सटीक जानकारी के लिए कृपया RBI की आधिकारिक वेबसाइट या अपने बैंक से संपर्क करें। किसी भी प्रकार का वित्तीय निर्णय लेने से पहले योग्य सलाहकार से परामर्श अवश्य लें।